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ऑक्टरलोनी किला

श्रेणी ऐतिहासिक

केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के परिसर में मेहता स्टेडियम के प्रवेश द्वार के निकट बना किला भारतीय ब्रिटिश स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है। नीमच में अंग्रेज सेना की सुरक्षा व शस्त्रागार के लिये इस किले का निर्माण सर डेविड ऑक्टर लोनी ने सन् 1819 में करवाया।

इस किले के निर्माण पर 1 लाख 50 हजार रूपया खर्च हुआ। अंग्रेज सेना के लिए बैरेक्स बनने के पूर्व सेना रिसाला मैदान (शिक्षक नगर के आस-पास) व वर्तमान हायर सेकेण्डरी स्कूल के आस-पास रहती थी। इसका प्रमाण ऑक्टर लोनी के पत्थर से मिलता है। चौकोर चार बुर्जी युक्त इस दुर्ग के भीतर लम्बे-लम्बे बरामदे थे जिन्हें 1975-76 के आस-पास आवास गृह में परिवर्तित कर दिया गया। बुजर्गों के नीचे तहखाने बने हुए हैं। किले के मध्य में एक कब्र बनी है जो रिचर्ड डब्ल्यू प्राईट की है। यह 1857 की क्रांति के दौरान मारा गया था। बायीं बुर्ज के समीप किले वाले बाबा की मजार है।

किले का दरवाजा दोहरा है। एक स्थायी द्वार है और दूसरा उठने-गिरने वाला था जो दरवाजे पर लगी गिर्रियों द्वारा उठाया- गिराया जा सकता था। दरवाजे के सामने गहरी खाई थी जो अब भर दी गई है।

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन के दौरान क्रांति कारियों ने इस पर दो बार आक्रमण किया था। द्वितीय आक्रमण में एक लम्बा घेरा डाला गया था जो 9 नवम्बर 1857 से 22 नवम्बर 1857 तक चला। लेकिन अंततः इस पर विजय प्राप्त नहीं हो सकी। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के ग्रुप कमाण्डेंट अतिरिक्त उपमहानिरीक्षक श्री जी. एस. गिल ने नीमच में 1857 की क्रांति और सी. आर. पी. के इतिहास को समेट कर एक विशेष संग्रहालय की स्थापना करने में गहरी रूचि ली हैं। काफी साहित्य देश-विदेश से मंगवाकर उन्होंने यहाँ जमा किया है। शस्त्र की व सामान की प्रदर्शनी प्रेरणा भवन में लगा रखी है। वहीं किले को स्थाई संग्रहालय का दर्जा दिलाने का भी उनका प्रयास है।