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नवतोरण मन्दिर

श्रेणी ऐतिहासिक, धार्मिक

जावद एवं नयागांव के बीच स्थित है खोर गाँव। जहाँ बना है “नवतोरण मन्दिर”। खोर को गुहील युगीन बस्ती माना जाता है। गाँव के के अनेक प्राचीन ऐतिहासिक स्मारक जीर्ण-शीर्ण अवस्था में गर्मी, सर्दी और वर्षा के प्राकृतिक प्रकोप को सहन करते हुए अपने पुरातन इतिहास को अपनी इस खोखली हड्डियों में छुपाए खड़े हैं। कहा जाता है कि ‘नवतोरण मन्दिर’ का निर्माण यहाँ के राजा ने अपनी नौ लड़कियों के विवाह की स्मृति में बनवाया था।

यह स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। इन पर खुदी हुई मूर्तियों की सुन्दरता, सन्तुलन और ओज़ मूर्तिकला के जीवित उदाहरण है। ये मध्यकाल के सामाजिक जीवन पर पूर्ण प्रकाश डालते हैं। इस ‘नवतोरण मन्दिर’ के मध्य में अनेक मूर्तियाँ आस-पास से एकत्रित कर रखी गई हैं जिसमें वराह की भव्य मूर्ति प्रमुख है। खोर गाँव में ही अनेक पत्थर की घाणियाँ इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं जिससे यह आभास होता है कि खोर कभी बड़ी बस्ती रहा है। खोर का वास्तु वैभव आज केवल नवतोरण मन्दिर तक ही सीमित है। पिछले कई वर्षों से उजाड़ पड़ी कलाकृतियों का वैभव सीमित होना स्वाभाविक हैं। 12 वीं एवं 13 वीं शताब्दी की कला चातुर्य का यह अप्रतिम उदाहरण हैं। उनकी पच्चीकारी और सूक्ष्मभाव प्रदर्शन का तरीका बहुत सुन्दर है।

‘नवतोरण’ में लगे हुए पत्थरों में कलाकारों ने जान फूंक दी है। विभिन्न प्रकार की नृत्य मुद्राएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं। भक्ति भाव व्यक्त करने वाले गणों की प्रतिमाएँ आत्म विभोर कर देने वाली हैं। नवतोरण मन्दिर 12 वीं शताब्दी का एक महत्वपूर्ण अवशेष है। यहाँ दो पंक्तियों में व्यवस्थित दस आलंकारिक महाराबों से निर्मित है। इस पंक्तियों में से एक लम्बाई में तथा दूसरी चौड़ाई में है और यह केन्द्र में एक दूसरे को काटती है। ये सभा भवन तथा अर्द्धमण्डपों में स्तम्भ युग्मों पर आधारित है। यह मन्दिर पत्राकृति सीमान्त मकर मुख तथा मालाधारी आदि अलंकरणों से सुसज्जित हैं।