बरूखेड़ा मंदिर
बरूखेड़ा के शिव मन्दिर नीमच से मात्र चार किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित बरूखेड़ा, राजपूत काल में अत्यधिक महत्वपूर्ण नगर था। यहाँ प्राचीन अवशेषों से निर्मित 4 मन्दिर हैं जो नागर शैली में निर्मित हैं। बरूखेड़ा के पूर्व में चारभुजा मन्दिर है। यह मन्दिर पहले वीरान था, जिसे गाँव वालों द्वारा आबाद कर विष्णु की प्रतिमा स्थापित की गई। इसके स्तम्भ परमार कालीन शैली से प्रभावित हैं। इसमें प्रथम दो पर अष्ट मातृ का अंकन है। गर्भगृह की द्वार शाखा पर नवगृह पट्टिका लगी है, शिखर में विष्णु, उमा महेश्वर की प्रतिमाएँ व वराह का अंकन है।
बरूखेड़ा के दक्षिण में एक वीरान शिव मन्दिर है। इसका निर्माण सम्वत् 1624 सावन सुदी अष्टमी या दशमी को हुआ था। डा आशय का अभिलेख सभा मण्डप के गुम्बद में अंकित है। इस मन्दिर निर्माण में संकर, नाथू, सोमा, नाथू मोटा, पीथा सहयोगी रहे हैं। गाँव। दक्षिण पश्चिम में एक तीसरा मन्दिर है, यह भी शिव मंदिर है। गर्भगृह का द्वार शाखाएँ कलात्मक है। उतरंग के ललाट में शिव दाएँ, बाँऐ विष्णु यमुना व शिव का अंकन है। जो अक्षमाल, त्रिशूल, खटवाँग व कलश लिए हैं। बाँयी ओर कुर्म वाहिनी गंगा व शिव है जो वरद् त्रिशूल, सर्प व कलश लिए हुए हैं। दोनों द्वार शाखाओं में से दाँयी ओर के नीचे कुबेर व बाँयी ओर के नीचे गणेश का अंकन है।
मन्दिर के बाहर की ओर सौलह भुजी चामुण्डा, पीछे विष्णु और चौदहभुजी नृत्यरत शिव की प्रतिमा है। प्रतिमा विज्ञान की दृष्टि से ये भारत की महत्वपूर्ण प्रतिमाओं में से एक है।
बरूखेड़ा के पश्चिमी उत्तरी कोने पर काले गोलाश्मों से चूने में तैयार किए चबूतरे पर पीतवर्णी बलुआ पत्थर से निर्मित विशाल मन्दिर है। इसका शिखर अर्द्धभन्न है। गर्भगृह के उतरंग पर दाँयी ओर वादक, वृंद, मध्य ललाट बिम्ब में गणेश, बाँयी ओर चार भक्तों का अंकन है जिसमें दोध्यानस्थ हैं व तीसरा कान पकड़ता दिखाया गया है जबकि अंतिम रथिका में पार्वती का अंकन है। इसमें गणेशजी, भैरव के अलावा सरस्वती की प्रतिमा है। इस मन्दिर का निर्माणकाल 16-17 वीं शताब्दी हो सकता है। बरूखेड़ा के सभी मन्दिर मध्यप्रदेश पुरातत्व विभाग के संरक्षित स्मारक हैं।