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मच्छी खल्ला, रानी छज्‍जा

श्रेणी अन्य

शैलचित्रों की दृष्टि से नीमच जिला अति समृद्ध है। जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर नीमच-सिंगोली मार्ग पर बसे डीकेन नगर के पूर्वी व पश्चिमी किनारे के गहरे नालों वाली कन्दराओं में आदि मानव द्वारा निर्मित शैल चित्रों का बहुमूल्य खजाना भरा पड़ा है।  

भारतीय पुरातत्‍वविद् डॉ. वाकणकर के अनुसार ये शैलचित्र मध्य पाषाणकाल से प्रागैतिहासिक काल तक के हैं डीकेन के शैलचित्रों की खोज श्री गिरिजा शंकर रूनवाल द्वारा की गई। डीकेन के शैलचित्रों को दो भागों में बाँटा गया हैं। डीकेन के उत्तर पूर्वी दिशा में 6 किलोमीटर की दूरी पर मच्छी खल्ला (मछली की आकृति वाला नाला) में तथा उत्तरी-पश्चिमी दिशा में रामनगर के निकट रानी छज्जा व अधरशिला के नाम से जाना जाता है। इन दोनों स्थानों पर गहरे नाले में दो से तीन किलोमीटर लम्बी, ऊँची नीची चट्टानों में लाल, हरे व सफेद रंग के हजारों चित्र बने हैं। इन शैलाश्रयों में मानव आकृतियाँ बनी हुई है। हाथ में धनुष है। बारहसिंगा, हिरन, गाय, त्रिशूल, पूजा, वृक्ष, शिकारी, बच्चा, बैलगाड़ी, फरसा लेकर शिकार के लिए निकला पुरूष, घोड़ा इसी से मिलते-जुलते चित्र हैं। नीमच जिले की मनासा तहसील में भी कंजार्डा के निकट भरड़ा दोह में भी शैलचित्र है। श्री गिरिजाशंकर रूनवाल ने डीकेन रतनगढ़ क्षेत्र का सर्वेक्षण कर नदी, पर्वत घाटियों में 22 स्थानों पर लगभग 100 चित्रित शैलाश्रयों की खोज की है। इन चित्रित विथिकाओं में मध्याश्मकाल से लेकर, प्रागैतिहासिक काल तक के चित्र हैं। इन चित्रों के माध्यम से मानव ने प्रकृति प्रेम एवं सौन्दर्य बौध की अभिव्यक्ति की है तथा साथ ही अपने दैनिक जीवन की अनेक गतिविधियों का चित्रण किया है।