पर्यटन मानचित्र जिला-नीमच
बरूखेड़ा
नीमच से 3 कि. मी. उतर दिशा में बरुखेडा गाँव मे प्राचीन अवशेषों से निर्मित 4 मंदिर है। क्र. 1, भगवान शिव को समर्पित है जिसके मण्डोवर में 14 भुजा शिव की व चामुण्डा की प्रतिमा लगी है। शिवमंदिर क्र.2 पंचरथी योजना में पश्चिममुख है। इसमें विक्रम संवत 1624 लिखा है। मंदिर क्र. 3 मूल रूप से भगवान शिव को समर्पित था । स्थानीय निवासियों ने इसमें विष्णु की चतुर्मुखी प्रतिमा स्थापित कर चारभुजा मंदिर का नाम दे दिया। इससे दो अष्टकोणीय स्तचम्भ् एवं नवग्रहो का अंकन दृष्टव्य है। शिवमंदिर क्र. 4 पीतवर्ण पत्थरों से बनाया है जिसे राज्या मंदिर कहते है। पास में तालाब है, जिस पर सिंधिया कालीन शिलालेख है। Xसावन
सावन ताम्राश्म युगीन बस्ती है। यहाँ गुप्त ओलीकर कालीम सूर्य मंदिर था। जिसका प्राचीन अभिलेख भी सुरक्षित है। तालाब किनार 11वी शताब्दी की महिषासुर मर्दिनी की पीत बलुआराम से निर्मित सुंदर प्रतिमा हैं। इसे बीस भुजा माता के नाम से जानते है।पास ही सावन-कुण्ड मे सुंदर बावड़ी है | पर्यटकों के ठहरने हेतु विश्राम गृह की सुविधा भी है। Xनीलकण्ठ महादेव मंदिर
नीमच-मनासा मार्ग पर बोरखेडी पानेरी गाँव से 1 कि.मी. दूर नदी के किनारे स्थित नीलकण्ठ महादेव मंदिर है। यह एक सुंदर प्राकृतिक स्थल हैं। इसे सुंदर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। नौकायन की संभावना भी है। Xभादवामाता
नीमच से 18 कि.मी दूर स्थित भादवामाता जिले का सबसे बड़ा धार्मिक आस्था का केन्द्र हैं। मंदिर में नवदुर्गा की प्रतिमा ब्रह्माणी (महासरस्वड़ती) रूप में प्रतिष्ठित हैं। यहां विशेष कर पक्षाघात से पीड़ित व्यक्ति आते है। माँ के दरबार में रात्री विश्राम करते हैं। समीपस्थ बावड़ी के जल से स्नान कर रोगमुक्त होते हैं। ऐसा माना जाता है कि नेत्रहीन व्यक्तियों को भी माँ की कृपा से नेत्र ज्योति प्राप्त होती है। भादवा माता में प्रतिवर्ष शारदीय एवं वासंती नवरात्रि मे मेला लगता है। माँ भादवा मालवा मेवाड़ के हजारो श्रदालुओं की आस्था में मालवा की वैष्णों देवी के रूप में ख्यात है भाटों की पौधी के अनुसार संवत 1531 में भादवामाता प्रतिमा की प्रतिष्ठा एक बरगद के पेड़ के नीचे की गई थी। जगदंबा का ब्रह्माणी रूप होने के कारण यहा बलि प्रथा निषेध है ठहरने हेतु विश्राम धर्मशालाएँ है। भादवामाता संस्थान यात्रियों के लिए आवश्यक व्यवस्थाएँ करता है। आस्था गृह भी यात्रियों की सुविधा हेतु उपलब्ध है। समीपस्थत ग्राम पिपण्यारावजी का कुण्ड - मंदिर लक्ष्मीनाथ मंदिर एवं किला व महल भी दर्शनीय है। Xपंचदेवल मंदिर जीरन
जीरन एक ताम़ाश्युगीन बस्ती गुप्तकालीन कला, संस्कृति और व्यापार का केन्द्र रही है। यहाँ का पंचदेवल मंदिर गुहिल युगीन स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है यह सप्तरची योजना में निर्मित हैं। बलुआ पत्थर से निर्मित इस मंदिर में पंचमुखी शिवलिंग स्थापित है। वीरासन मुद्रा में मानवाकार गरुड़ की अलंकृत प्रतिमा है। मंदिर परिसर में 11 वीं 12 शताब्दी की शिव शक्ति एवं विष्णु की प्रतिमाए है। पंचदेवल मंदिर के सामने पाया टिकेत की छत्री है। इस छत्री पर विक्रम संवत 1065 व 1053 के. 4 अभिलेख है जो महासामंताधिपती विग्रहपाल की पत्नी व जुजुकया द्वारा प्रदत स्तंभ की सूचना देते है। जीरन का प्राचीन तालाब सिंचाई एवं पेयजल का स्त्रोत है इसमें कलम खिलते हैं। गाँव में 15वी 16 वीं शती में निर्मित एक किला है। 1857 की क्रांति में क्रांतिकारियों ने इसी किले में 23 अक्टूबर 1857 को नीमच की अंग्रेज सेना को परास्त किया था। उनके सेनापति केप्टन टकर व केप्टन सेम्युअल रीड के सिर काट डाले थे । उनको मन्दासौर ले जाकर जहा टांग दिया वह स्थान मुण्डीगेट कहेलाया। Xसांभर कुण्ड
यह स्थान नीमच से 10 कि.मी.दूर उत्तर-पश्चिम की और स्थित है। यहां प्रतिहार कालीन शिव मंदिर है। मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित पूर्वाभिमुख पंचरथी योजना में निर्मित है। यहा नवनिर्मित हनुमान मंदिर भी है। प्रकृति के शांत वातावरण में मंदिर के सामने एक विशाल कुण्ड भी बलुआ काले पत्थरो से बना हुआ है, जिसमे वर्ष भर पानी भरा रहता है । Xरामपुरा
रामाभील के नाम पर बसा नगर तेरहवी शताब्दी से चन्द्रावतो की राजधानी रहा । महाराणा कुंभा ने इसे जीतकर मेवाड़ के अधीन किया। रायमल, अचल एवं दुर्गमान के समय में नगर का वैभव चरमोत्कर्ष पर था। दुर्गमान ने रामपुरा में अनेक निर्माण कार्य कराए। राजमहल, शहर का किला बड़ा तालाब, जगदीश मंदिर, कल्याणराय मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, येणकेश्वर महादेव, चारभुजा नाथ मंदिर, पांतुशाह की बावड़ी के अलावा जामा मस्जिद व बाबा मुल्लाखान की दरगाह दर्शनीय है। बाबा मुल्ला खान बोहरा समाज के धर्मगुरू के वंशज थे। ईसवी सन 1701 में आपका इंतकाल रामपुरा में ही हुआ रामपुरा शिक्षा केन्द्र के रूप मे भी जाना जाता है। Xसहस्त्र मुखेश्वर मंदिर कुकड़ेश्वर
नीमच जिला मुख्यालय से 40 कि.मी. दूर नीमच-झालावाड़ मार्ग पर स्थित कुकडेश्वर में पुराने तालाब के किनारे सहस्त्र मुखेश्वर मंदिर है। इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्वार तुकोजीराव होल्कर ने कराया। तीन फीट उंचे एवं 12 से 16 इंच व्यास के शिवलिंग में सहस्त्र मुख उकेरे गए हैं। गाँव में 12वी शती का पार्श्वनाथ मंदिर है। भगवान विष्णु को समर्पित एक सुंदर मंदिर भी है। शिवरात्रि पर सहस्त्रा मुरखेश्वर मेला लगता है कुकडेश्वर में पान की खेती की जाती है यहां का पान पंजाब व पाकिस्तान तक निर्यात होता है। Xकेदारेश्वर मंदिर
रामपुरा से 8 कि.मी. दूर केदारेश्वर नामक स्थान है। यहां पुरानी गुफाओं में भगवान शिव का प्राचीन देवालय है। यहस्थान आदिमानव का शरणस्थल रहा है। कुछ गुफाओं में शैलचित्र देखे जा सकते है। कहा जाता है कि पाण्डवों ने अपना अज्ञातवास यहीं किया था। यँहा एक प्राकृतिक झरना वर्ष भर भगवान शिव का अभिषेक करता है। इस मंदिर का जीर्णोद्दार इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया । Xचतुर्भुज मंदिर कंजार्डा
रूपा नदी के किनारे कजार्डा गाँव में स्थित चारभुजानाथ मंदिर प्राचीन परमारकालीन अवशेषों से निर्मित है। प्राचीन मंदिर में विष्णु, परशुराम, बलराम, वराह, कल्कि गंगा, जमुना की प्रतिमाएँ प्रस्तर चौखटो में लगी है जन्माष्टमी पर यँहा विशेष पूजा-अर्चना होती है। यह गाँव अफीम एवं गुलाब की खेती के लिए प्रसिद्ध है। Xझरनेश्वर महादेव
यह स्थान कजार्डा से 6 कि.मी दूर है तथा पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस झरने के किनार वराह का मंदिर एक ऊंचे पहाड़ पर है। मंदिर के गर्भगृह में वराह की कलात्मक प्रतिमा प्रतिष्ठित है। चतुर्भुजी वराह प्रतिमा के पांव के नीचे दबा राक्षस हिरण्याक्ष को दिखाया गया है। प्राकृतिक झरना इस स्थल की सुंदरता बढ़ाता है। Xआंत्री माताजी
मनासा से दक्षिण पूर्व स्थित आंत्रीमाता नगर चंद्रावत राजवंश की प्राचीन राजधानी है। यँहा चंद्रावतो की कुलदेवी का विशाल मंदिर 12 फीट उंची जृगती पर निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह में पंहुंचने हेतु सीढियाँ चढ़कर जाना पड़ता है। गर्भगृह में देवी विराजमान है। यह मंदिर अहिल्याबाई टस्ट द्वारा संचालित है। मंदिर का मुख्य शिखर नागर शैली में है। चन्द्रावतो के पाटनाओ के अनुसार यह मंदिर राव शिवा ने संवत् 1397 में बनाया था। इस मंदिर में नवरात्रि को मेला भरता है। धार्मिक श्रदालु अपनी जीभ काटकर माँ को चढ़ा देते है। आंत्री माता मंदिर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है। Xसुखानंद महादेव
अठाना से लगभग 7 कि.मी. दूर अरावली की "सुरम्य पहाड़ी पर सुखानंद नामक प्राकृतिक झरने के पास सुखानंद महादेव का रमणीक स्थान है। बाल गिरि गोस्वामी ने विक्रम संवत 1165 सावन सुदी 5 को सुखानंद की स्थापना की। कहा जाता है कि शुकदेव मुनी ने इस स्थान पर तपरश्चर्या की थी। मंदिर के समीप ही एक गुफा है जिसमें जल भरा रहता है इसे गुप्त गंगा कहते है पहाड़ो की शिराओं से पानी रिसकर जलभराव होता है | यहा 60 फीट की ऊंचाई से झरना गिरता है। समीपस्थ नाले के किनारे आसन दरियानाथ का सिद्ध मठ एवं नक्षत्र वाटिका है। Xअठाना पैलेस
जावद के समीप अठाना पैलेस ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर के रूप में वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। कृष्ण पैलस का अतरंग विशाल एंव सर्व सुविधा युक्त है। शीरा महल, गुंबद वाला झरोखा महल, दरीखाना, बादल महल, जनाना महल चित्रशाला, पायगा, नोलखा बावडी चित्र लक्ष्मीनारायण मंदिर आदि है। अठाना पैलेस व दुर्ग राजपूत शैली मे है। इस पैलेस को होटल हेरिटेज मे भी उपयोग किया जा सकता है। अठाना पैलेस को राव तेजसिंह ने 17 फरवरी 1828 को बनवाया था। अठाना दुर्ग के निकट से गंभीरी नदी बहती है। Xनवतोरण मंदिर खोर
यह नगर गुहिल युगीन देवालयों का अद्भुत केन्द्र है यहाँ का नवतोरण मंदिर केन्द्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा हो संरक्षित हैं । इस मंदिर की शोभा दस तोरणों के कारण है। मंदिर का द्वार पूर्वाभिमुखी है। यहाँ एक वराह प्रतिमा हैं। पूर्व में यँहा शिवालय था। अब इसे नवतोरण मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त सुपारा बापड़ी राज्य संरक्षित स्मारक है। आसपास 12 वी 13 वीं शती के अनेक अवशेष एवं मूर्तियाँ है। किंवदंती है कि नवतोरण मंदिर का निर्माण यँहा के राजा ने अपनी 8 लड़कियों के विवाह की स्मृति में कराया था। यहा राई मंदिर, देवली मंदिर भी प्रसिद्ध हैं। Xरतनगढ़ दुर्ग
नीमच से 50 कि.मी. दूर रतनगढ़ दुर्ग कस्बे से लगभग 1100 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। दुर्ग तक पहुंचने के लिए 14 खतरनाक पहाड़ी मोड़ से रास्ता जाता है जिसे धारा कहते है। दुर्ग चारो और से 30 फीट उंची प्राचीर से विश है। सुरक्षा की दृष्टि से अभेध है। इस दुर्ग का निर्माण हाड़ावंशीय राजा रतन सिंह ने 1854 ईसवी में करवाया था। यह दुर्ग लम्बे समय तक मेवाड़ महाराणाओं के अधीन रहा। महाराणा अरिसिंह के समय मे मेवाड़ मराठा संधि के फलस्वरुप यह दुर्ग मराठों के अधीन हो गया। Xसिंगोली दुर्ग
नीमच-कोटा मार्ग पर जिला मुख्यालय से 50 कि.मी दूर आलू हाडा द्वारा बनाया गया किला विद्यमान है। सिंगोली किले के चारों और 15 फीट गहरी और 15 फीट चौड़ी खाई थी किले के बीच में एक महल बना है जो जीर्ण हो गया है। चित्तौड़ की रानी पदमिनी सिंहल द्वीप की न होकर मूल रूप से सिंगोली की थी ऐसी किंवदंती है 1857 की क्रांति में तात्या - टोपे ने अंग्रेजो से मुकाबला सिंगोली के क्षेत्र में किया था। Xकामा-कीरता पक्षी अभ्यारण्य
नीमच जिले की जावद तहसील में जार-कमेरा मार्ग पर करता गाँव से 3 कि.मी. की दूरी पर बेचिराग कामा के निकट चारों और पहाड़ियों से घिरी एक झील के जिसे कामा कीरताझील कहते है। शरद ऋतु में यहाँ साईबेरिया से आए सारस पक्षियों का कलरव है। ठण्ड के मौसम में इस झील का अनुकूल वातावरण प्रवासी पक्षियों के लिए उपर्युक्त होने से प्रतिवर्ष सैकड़ो की तादात मे पक्षी आते हैं। Xडिकेन के शैलचित्र
शैल-चित्रों की दृष्टि से नीमच जिला सम्पन्न है| जावद तहसील के डीकेन के आसपास के 15 से 20 किमी के क्षेत्र में चित्रित शैलाश्रय है जिनमें भड़कानाला, अधरशिला चाँद बेरी, रानी छज्जा मच्छी खल्ला, मेण्डाकरी, प्रमुख है। जहाँ आदिमानव द्वारा उकेरे 30 से 40 हज़ार साल पुराने शैलचित्र दृष्टिगोचर होते हैं। डॉ. वाकणकर के अनुसार ये चित्र मध्य पाषाण काल से उत्तर पाषाण काल तक के है। Xजमुनियारावजी महल के भित्ति चित्र
नीमच जिले में भिति चित्रों की प्राचीन परंपरा है। जमुनियारावजी एवं पिपल्यारावजी के महलो में सुंदर भिति चित्र हैं। भिति चित्रो मे रागमाला, देवपूजन श्रंगार, आखेट उत्सव प्रधानता व राधा कृष्ण से प्रेरित चित्र भी है। अठाना, रामपुरा, भाटखेड़ी ,नीमच सिटी में भी भिति चित्र हैं। Xअधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए पर्यटन स्थल के नाम पर क्लिक करें